स्वामी हरिदास जी हिन्दी पुस्तक | Swami Haridas Ji Hindi Book PDF


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स्वामी हरिदास जी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Swami Haridas Ji Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : स्वामी हरिदास जी | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : प्रभुदयाल मीतल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : साहित्य संस्थान, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 53 MB है | इस पुस्तक में कुल 171 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "स्वामी हरिदास जी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Swami Haridas Ji | This book is written/edited by : Prabhudayal Meetal | This book is published by : Sahitya Sansthan, Mathura | PDF file of this book is of size 53 MB approximately. This book has a total of 171 pages. Download link of the book "Swami Haridas Ji" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
प्रभुदयाल मीतलजीवनी53 MB171



पुस्तक से : 

दोनों के समर्थनमें विरोधी तर्क के कारण तत्त्वान्वेषी निष्पक्ष विचारकों के लिए भी किसी मत पर पहुँचना कठिन हो गया है। यही कारण है, मिश्रबंधु विनोद से लेकर अब तक लिखे हुए हिंदी साहित्य के प्रायः सभी इतिहास ग्रंथोंमें स्वामी हरिदास जी का त्रुटिपूर्ण जीवन-वृत्त मिलता है।

 

पुस्तक में प्रकाशित वाणी के संशोधनमें हमने बाबा शरण जी द्वारा संपादित स्वामी हरिदास रस-सागर से सहायता ली है और इसमें दिये हुए अधिकांश चित्र संगीत कर्यालय, हाथरस से छापे गये हैं। इसके लिए मैं उक्त बाबा जी तथा संगीत कार्यालय के संचालक श्री प्रभुलाल जी का आभारी हूँ।

 

जब हिंदी साहित्य के सर्वमान्य विद्वान इसके संबंध में मत नहीं बना सके, तब पाठकोंसे क्या आशा की जा सकती है। इसके प्रतिकार के लिए यह आवश्यक था कि विद्वान स्वामी जी की वाणीको समुचित टीका-टिप्पणी के साथ प्रकाशित करते, किंतु इसके विपरीत वे इसे सर्व साधारण से छिपाने के लिए अप्रकाशित रखा।

 

 

हरिदास जी के अनुगामियों में एक वर्ग संतोंका है और दूसरा गृहस्थ गोस्वामियों का। गोस्वामी वर्ग अपने को स्वामी जी का वंशज बतलाते हैं। किंतु ये शिष्य परंपरा के संतों को स्वीकार नहीं है। दोनों वर्गों के पारस्परिक विवादका मूल कारण यही है। इस विवाद के फलस्वरूप स्वामी जी के जीवन से संबंधित दो मत बन गये हैं, जिनका सामंजस्य करना एक बड़ी समस्या है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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