वैदिक सूक्त संकलन हिन्दी पुस्तक | Vedic Sukta Sankalan Hindi Book PDF


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वैदिक सूक्त संकलन हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vedic Sukta Sankalan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वैदिक सूक्त संकलन | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. विजय शंकर पांडेय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मोतीलाल बनारसदास, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 112 MB है | इस पुस्तक में कुल 212 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वैदिक सूक्त संकलन" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vedic Sukta Sankalan | This book is written/edited by : Dr Vijay Shankar Pandey | This book is published by : Motilala Banarasidas, Delhi | PDF file of this book is of size 112 MB approximately. This book has a total of 212 pages. Download link of the book "Vedic Sukta Sankalan" has been given further on this page from where you can download it for free.


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विजय शंकर पांडेयधार्मिक112 MB212



पुस्तक से : 

प्रस्तुत संकलन इसी उद्देश्यकी पूर्ति की दिशा में किया गया प्रयास है। भारत के सभी विश्वविद्यालयों के संस्कृत-विभाग के मनीषियों ने स्नातक कक्षा में वेदों के कतिपय सूक्तों को पाठ्यक्रममे स्थान दिया है, ताकि विद्यार्थी वेदों के सामान्य स्वरूप से अवगत हो सकें।

 

इन चारों अर्थों के वाचक 'विद्' धातु से वेद शब्द की व्युत्पत्ति स्वीकार की है। विद् धातु से करण तथा अधिकरण दोनों ही अर्थोंमें धञ् प्रत्यय लगने पर वेद शब्द निष्पन्न होता है। इस प्रकार वेद शब्दका अर्थ है जिस ज्ञानसे सभी मनुष्य सभी सत्य विद्याओं को जानते हैं तथा जिससे सम्पूर्ण जगत् स्थित है। 

 

असुन् प्रत्ययान्त वेद शब्दका अर्थ 'धन' है। यह ऋग्वेद में कई बार आया है। ऋग्वेद प्रातिशाख्य की वर्गद्वयवृत्ति की प्रस्तावनामें विष्णुमित्र ने वेद शब्दकी व्युत्पत्ति करते हुए कहा है 'विद्यते जायते लभ्यते वैभिर्धमादिपुरुषार्थ इति वेदः' यानी जिसके द्वारा धर्मादि पुरुषार्थ प्राप्त किये जाते हैं, वह ही वेदशब्दवाच्य है।

 

 

स्मर्तव्य है कि कालान्तरमें एक विशेष प्रकार के धार्मिक सम्प्रदाय के साहित्य के लिए भी 'आगम' शब्द का प्रयोग होने लगा, जैसे शैव आगम, वैष्णव आगम एवं बौद्ध आगम आदि। वेद के लिए 'निगम' शब्दका प्रयोग किया जाता है। यास्क ने निरुक्त में जितने उदाहरण वेदों से दिये हैं, उनमें प्राय: सर्वत्र निगम शब्द का प्रयोग किया है 'निगम' शब्द उन स्थलों पर वेदका ही वाचक है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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