एक्यूप्रेशर चिकित्सा हिन्दी पुस्तक | Acupressure Chikitsa Hindi Book PDF

 

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एक्यूप्रेशर चिकित्सा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Acupressure Chikitsa Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : एक्यूप्रेशर चिकित्सा | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 351 MB है | इस पुस्तक में कुल 132 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "एक्यूप्रेशर चिकित्सा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Acupressure Chikitsa | Author/Editor of this book is : Unknown | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 351 MB approximately. This book has a total of 132 pages. Download link of the book "Acupressure Chikitsa" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अज्ञातआयुर्वेद, स्वास्थ्य351 MB132



पुस्तक से : 

एक्यूप्रेशर द्वारा इलाज के लिए चिकित्सकों ने मानव शरीर को लम्बाई की भाँति चौड़ाई के रुख में भी बाँटा है। लम्बाई के रुख में जबकि शरीर को 10 भागों में बाँटा गया है, चौड़ाई के रुख में इसको तीन भागों में बाँटा गया है जिसे ट्रांसवर्स जोनस (transverse zones of the body) कहते हैं प्रतिबिम्ब केन्द्रों की पहचान करने के लिए शरीरके भागों के अनुरूप हो हाथों तथा पैरों को भी तीन भागों में बाँटा गया है

 

प्रत्येक केन्द्र पर रोगी की सहनशक्ति अनुसार आधा मिनट से दो मिनट तक हाथ के अंगूठे या अंगुली के साथ गोलाकार स्थिति में दिन में एक या दो बार प्रेशर दिया जा सकता है। प्रेशर देते समय केवल अंगूठा या अंगुली ही हिलायें, कान नहीं. गर्भवतीस्त्रियों तथा गम्भीर हृदय रोग के रोगियों के कानों पर प्रेशर नहीं देना चाहिए।

 

कोई भी व्यक्ति अस्वस्थ नहीं रहना चाहता पर सोचने की बात यह है कि मनुष्य रोगी क्यों होता है? रोग होने के दो प्रमुख कारण है - पहली अवस्था में मनुष्य अपनी लापरवाही, गलत रहन-सहन, अस्वच्छता, असंतुलित आहार हानिकारक पदार्थों का सेवन, चिंता, मानसिक तनाव तथा व्यायामहीनता के कारण रोगी होता है। दूसरी अवस्थामें व्यक्ति अपनी लापरवाही के कारण नहीं अपितु दूषित वातावरण संक्रमण, चोट आदि लगने, बुढ़ापा आने तथा कुछ पैतृक त्रुटियों के कारण रोगी होता है जो मूलरूप से उसकी अपनी समर्थतासे बाहर होते हैं।

 

 

चौड़ाई के सिद्धांत के अनुसार पहले भाग में सिर सबा गर्दन में स्थित विभिन्न अंगों के प्रतिविध केन्द्र होते हैं अर्थात हाथों तथा पैरों की अंगुलियों तथा हाथों तथा पैरों के बिल्कुल ऊपरी भाग में इन अंगों के केन्द्र है। दूसरे भागमें उन अंगों के प्रतिबिन्ध केन्द्र है जोकि छाती के भाग में स्थित है अर्थात diaphragm से ऊपरी भाग में तीसरे भाग में केन्द्र आते हैं जोकि पेट, पेट से नीचे के भाग, टोगों तथा पैरों से सम्बन्धित है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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