आहार शास्त्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kak Chandiswara Kalpatantram Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : काक चंडीश्वर कल्पतंत्र | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: श्री कैलाशपति पाण्डेय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी| इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 45 MB है | इस पुस्तक में कुल 73 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "काक चंडीश्वर कल्पतंत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Kak Chandiswara Kalpatantram | Author/Editor of this book is : Shri Kailashpati Pandey | This book is published by : Chaukhambha Sanskrit Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 45 MB approximately. This book has a total of 73 pages. Download link of the book "Kak Chandiswara Kalpatantram" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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श्री कैलाशपति पाण्डेय | धर्म, तंत्र | 45 MB | 73 |
पुस्तक से :
काकचण्डीश्वर कल्पतंत्र सिद्धिकाल (ईसा के कुछ पूर्व से, १००० वर्ष बाद तक) का ग्रन्थ है। उस काल में देवताओंकी उपासना के विभिन्न प्रकार प्रचलित थे, जिनमें कुछ आज भी साधकों की गुप्तसाधना के रहस्य बने हुए हैं। उसकी गोपनीयता ही इसके प्रचार में बाधक हुई, जिससे आज इसे अन्धविश्वास या जादू कहकर टाल दिया जाता है।
वैसे तो काकचण्डीश्वर नाम से प्रारम्भ होने वाले दो-तीन अन्य ग्रंथ भी हस्तलिखित रूप में वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में देखने को मिले, तथा कुछ आगम के आकर ग्रंथों में काकचण्डीश्वर संवाद रूप में भी यत्र-तत्र बिखरा साहित्य उपलब्ध होता है। परन्तु वह सब केवल तंत्र का विषय है।
समुपलब्धेषु प्रत्येषु मुद्रितानां संख्या कीदृशीति विदित चरमेव संस्कृत विद्या बुषां विदुषाम् अनेकमानवीयजीवनव्ययेनाऽपि न पारयति कोऽपि साधारण घियणासंपन्नः साकल्येन सफल संस्कृतपुस्तक पारापारं समुत्तरीतुम् । अमुद्रिताना मपि ग्रन्थानां संख्या नाल्पीयसी.
उस काल में हमारा चिकित्सा जगत् भी तांत्रिक क्रियाओं का आश्रय बना तथा आज भी इन औषध के सिद्धि-विशेष के आधार पर फल विशेष शतशोनुभूत और प्रत्यक्षदष्ट हैं। उदाहरण के लिए तिजारी और चौथिया ज्वर कतिपय औषधि के सिद्धि विशेष के आधार पर विशिष्ट कालमें धारण या सेवन से छूट जाता है। सिद्ध सहदेवी के शिर पर धारण करने मात्र से ज्वरसे मुक्ति मिलती है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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