प्राणायाम विज्ञान और कला हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Pranayam Vigyan Aur Kala Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : प्राणायाम विज्ञान और कला | यह पुस्तक 'दी साइंस एंड आर्ट ऑफ़ डीप ब्रीथिंग' का हिन्दी अनुवाद है | इस पुस्तक के मूल लेखक/संपादक है: डॉ शोजावुरो ओटेव | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : इंडियन प्रेस लिमिटेड, प्रयाग | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 15 MB है | इस पुस्तक में कुल 163 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "प्राणायाम विज्ञान और कला" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Pranayam Vigyan Aur Kala | This book is a Hindi translation of 'The Science and Art of Deep Breathing'| Original Author/Editor of this book is : Dr Shozavuro Otabe | This book is published by : Indian Press Limited, Prayag| PDF file of this book is of size 15 MB approximately. This book has a total of 163 pages. Download link of the book "Pranayam Vigyan Aur Kala" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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पीताम्बरदत्त बड़यवाल | आयुर्वेद, स्वास्थ्य | 15 MB | 163 |
पुस्तक से :
यह पुस्तक डा० शोजावुरो ओटेब के 'दि साइंस ऐंड आर्ट ऑफ डीप ब्रीदिंग' का अनुवाद है। उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में "यक्ष्मा के विरुद्ध प्राणायाम" नाम की एक पुस्तिका जापानी भाषा में लिखी थी। प्राणायाम के प्रचार के लिये उन्होंने इसकी ७०० प्रतियाँ मुफ्त बाँटो थीं। इस पुस्तिका ने प्राणायाम के पक्ष में जापानमें एक लहर सी उठा दी थी।
प्राणायाम का विषय हमारे लिये नया नहीं है। जितनी पुरानी हमारी हिंदूआर्य सभ्यता है उतना ही पुराना हमारा उससे परिचय भी है। हमारी सभ्यता को बहुत पुरानी न माननेवालों को भी मानना पड़ा है कि तीन सहस्र वर्ष पूर्व भारतमें प्राणायाम का आविष्कार हो चुका था। आज से दो हजार वर्ष पहले चीनियों को भी उसका ज्ञान था।
हमारे यहाँ बहुत प्राचीन काल में योग-शास्त्र का प्रवर्धन हो चुका था। योग का प्राणायाम एक मुख्य अंग है। उसके द्वारा योगी नाभिचक्र में सोई हुई कुल-कुंडलिनी को जगाकर सुषुम्ना के मार्ग से ब्रह्मरंध्र की ओर प्रेरित करते थे ।
बहुत प्राचीनकाल में भी रोगों को दूर करने के लिये प्राणायाम का उपयोग होता था। कुछ रोमन ग्रंथकारों के ग्रंथों से पता चलता है कि रोम में रोगों को आराम करने के लिये साँस रोकने का अभ्यास किया जाता था। उनका विश्वास था कि ऐसा करने से शरीरमें गर्मी पैदा होती है जिससे रोग भस्म हो जाते हैं और शरीर बलवान् हो जाता है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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