श्री तन्त्रालोक हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Shri Tantraloka Hindi Book PDF

    

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श्री तन्त्रालोक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Tantraloka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री तन्त्रालोक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ परमहंस मिश्र हंस | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 104 MB है | इस पुस्तक में कुल 653 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री तन्त्रालोक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Tantraloka | Author/Editor of this book is : Dr Paramhansa Mishra Hansa| This book is published by : Sampoornanand Sanskrit Vishvavidyalaya, Varanasi | PDF file of this book is of size 104 MB approximately. This book has a total of 653 pages. Download link of the book "Shri Tantraloka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ परमहंस मिश्र हंसधर्म, तंत्र104 MB653



पुस्तक से : 

श्रीतन्त्रालोक के स्वाध्याय की आज अत्यन्त आवश्यकता है। यह एकमात्र ऐसा आगमिक उपनिषद् है, जिसमें भारतीय साधनाको नये आयाम से मण्डित किया गया है। नश्वर को अविनश्वर में, स्थूल को सूक्ष्म में, इदम् को अहम् में, सङ्कोच को विकास में, जीव को शिवमें समाहित होने की केवल देशना का ही निर्देश इसने नहीं दिया है, वरन् विधिमें उतारकर पगडण्डियों को राजमार्गमें बदल दिया है।

 

जीवन दर्शन की दिशा में विकास की दृष्टि अनिवार्यतः आवश्यक है। किसी रूढि से बँधकर समाज कुण्ठाग्रस्त हो जाता है। कुण्ठा ही तम है। वैदिक द्रष्टाकी दृष्टि से इस बिन्दु को निरखने-परखने के बाद ही लिखा गया - 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' तमस् में नहीं, कुण्ठा में नहीं, संकोच के कलुष कलङ्क में नहीं, वरन ज्योति की जागरूकता में, प्रकाशकी रोचिष्णुता में, और विकासकी विकसनशीलतामें ही जीवन के फूल खिल सकते हैं, दर्शन को नयी दृष्टि मिल सकती है.

 

श्रीमन्महामाहेश्वर श्रीमदभिनवगुप्तपादाचार्य दशवी शताब्दी के द्वैपायन व्यास थे। व्यासदेव महर्षि थे, प्रज्ञा प्रकाशकात्म्य के प्रतीक पुरुष थे। भारतीय सांस्कृतिक सुधा प्रवाह के प्रवर्तक थे। आध्यात्मिकता के अधीश्वर अधीष्ट पुरुष थे। उनके विराट् व्यक्तित्व का आकलन विश्वके प्रज्ञापुरुष करते हैं।

 

 

श्रीतन्त्रालोक इस दिशा में भारतीय समाज के लिये आलोकस्तम्भ के समान सजग भाव से नवजीवन को अभिनव ज्योति से ज्योतिष्मान् बनाने में सक्षम है। अध्येताओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि श्रीतन्त्रालोक के आलोक से उनका जीवन आलोकललित हो रहा है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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