श्री वटुक पूजा विधि हिन्दी पुस्तक | Shri Vatuk Pooja Vidhi Hindi Book PDF

   

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श्री वटुक पूजा विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Vatuk Pooja Vidhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री वटुक पूजा विधि | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: पंडित प्रेमनाथ हण्डू| इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री परमानन्द प्रत्नविद्या शोध संस्थान, कश्मीर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 21 MB है | इस पुस्तक में कुल 52 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री वटुक पूजा विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Vatuk Pooja Vidhi | Author/Editor of this book is : Pandit Premnath Handu | This book is published by : Shri Paramanand Research Institute, Kashmir| PDF file of this book is of size 21 MB approximately. This book has a total of 52 pages. Download link of the book "Shri Vatuk Pooja Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित प्रेमनाथ हण्डूधर्म, तंत्र, भक्ति21 MB52



पुस्तक से : 

प्रातः स्मरणीय महामुनि कश्यपजी की मानस पुत्री कश्मीरमें आदि काल से जो भी पर्व मनाये जाते हैं, उनमें 'शिवरात्री' सर्वोपरि हो नहीं, श्रपितु सर्वमान्य भी है, इस तथ्य का सबल प्रमाण हमें इस बात से स्वतः सिद्ध मिल जाता है कि इस महोत्सव का छायोजन बराबर फाल्गुण कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रमावस्या तक चलता रहता है । पूरा एक पखवाड़ा इस महापर्व को मनाने में व्यतीत होता है. 

 

कश्मीर प्रदेश में यह महापर्व 'बटुक - पूजा' के रूप में मनाया जाता है, स्पष्ट कारणों से यह 'भैरव पूजा' ही है। 'भरण', 'रमण' के प्रतीक भैरव को तृप्ति हो इसका मूल उद्देश्य है । काश्मीरी पण्डित अपनी-अपनी कुलरीति के अनुसार इसे सामिप अथवा निरामिष पद्धति से सम्पन्न करते हैं।

 

मानव संस्कृति और सनातन मर्यादा पर हर युग में चिरवसन्त छाया रहता है, यह कभी भी बासी नही पड़ सकती।  नवीन वास्तव में इसी तरह प्राचीन की नई मांगों के अनुरूप पुनर्व्याख्या है, यह एक निरन्तर और अजस्रप्रवाह है, लहरें बनती है बिखरती है परन्तु रुकती नही। संस्कृति और मर्यादा नितनयी आस्थाओं का संबल पाकर मानव-मन के लिये मानसिक खाद्य प्रस्तुत करती जाती है, शरीर की पुष्टि के साथ-साथ उसक आत्माकी भूख को मिटाती हैं। जीवन का यथार्थ सत्य यही है।

 

 

पूजक सर्व प्रथम पूर्व दिशा की तरफ श्री बटुक भैरव को पूर्ण रूप से सजावे, ईशान कोण (अपने बायें तरफ के उपरले कोण) पर 'ब्रह्म कलश' चूने से बनावे, उसके अष्टदल कमल पर कलश-पात्र को रखे, जिस में दर्भ का बनाया हुआ विष्टर हो, पात्र जलसे भरा हो, और अखरोटों से युक्त हो.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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