वृद्ध स्वच्छन्द संग्रह तंत्र पुस्तक | Vriddha Svachchhanda Sangraha Tantra Book PDF

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वृद्ध स्वच्छन्द संग्रह तंत्र पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vriddha Svachchhanda Sangraha Tantra Book



इस पुस्तक का नाम है : वृद्ध स्वच्छन्द संग्रह तंत्र | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ प्रकाश पाण्डेय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 31 MB है | इस पुस्तक में कुल 231 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वृद्ध स्वच्छन्द संग्रह तंत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vriddha Svachchhanda Sangraha Tantra | Author/Editor of this book is : Dr Prakash Pandey | This book is published by : Rashtriya Sanskrit Sansthan, New Delhi | PDF file of this book is of size 31 MB approximately. This book has a total of 231 pages. Download link of the book "Vriddha Svachchhanda Sangraha Tantra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ प्रकाश पाण्डेयधर्म, तंत्र31 MB231



पुस्तक से : 

इस ग्रन्थकी विषयवस्तु अत्यन्त गूढ़ तथा गोप्य है। अदीक्षित जिज्ञासुओं के लिये उसका समझना सरल नहीं है, किन्तु डॉ. पाण्डेय ने ग्रन्थ की भूमिका में उसका सार-संक्षेप अपेक्षाकृत सरल रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया है, फिर भी अत्यन्त गोप्य विषयोंके अति-विशदीकरण से वे विरत रहे हैं। ऐसे विषयों को गुरु कृपैकगम्य मानकर उन्होंने अधिकारियों के लिये छोड़ दिया है।

 

प्रथमपटल का आरंभ मंगलाचरण से हुआ है। यह श्लोक कश्मीर शैवदर्शन के अन्य ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। श्लोक गुरुरूप शिव को समर्पित है एवं कुछ शब्द दोनों मातृकाओं में खंडित हैं। मंगलाचरण के ३ श्लोकों के पश्चात् शास्त्र जिज्ञासा का उपक्रम पारंपरिक रूप से विस्तृत भूमिका के रूप में किया गया है।

 

द्वितीय पटल में वृद्धनाथ के द्विविध अधोरमंत्र का विधान एवं चर्या का व्यवस्थित रूप से वर्णन किया गया है। एतदर्थ प्रथमतः "याग स्थान" जिसमें एकलिंग, श्मशान, पर्वतशिखर, नदीसंगम, भूगृह, स्वगृह, द्विजगृह अटवी, निर्जनस्थल अथवा यथा रूचि आदि विकल्प बताए गए हैं। किसी एक योग स्थान को विधिवत् सुशोभित करने तथा भूमि संस्कार की अघोरक्रमानुकूलविधि बताई गई है।

 

 

विंश पटल में एकादशाक्षर मंत्र के पंचरत्न अथवा बीज मंत्रों का उद्धार एवं महाकूट मंत्र का उद्धार दार्शनिक स्तर पर ही वर्णित है। इन मंत्रों एवं कूट का स्वरूप चिद्व्योम में ही प्रकट हो सकता है। ये वर्णन अत्यन्त रहस्यमयी भाषा में है। मंत्रोपदेश के पश्चात् उसकी साधना की विस्तृत फलश्रुति (४९६१) वर्णित है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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